Ayurved, प्राचीन भारतीय चिकित्सा शास्त्र, का इतिहास लगभग 5000 साल पुराना है। इसका शब्द संस्कृत के "आयुर्" (जीवन) और GV "वेद" (ज्ञान) से बना है, जिसका अर्थ है "जीवन का ज्ञान"।
प्राचीन युग (3000-1500 ईसा पूर्व) आयुर्वेद के प्राचीन लेख, जैसे कि "अथर्ववेद" में इसका उल्लेख है। अथर्ववेद में कुछ औषधियों और उनके प्रयोगों का वर्णन मिलता है। संहिता युग (1500 ईसा पूर्व-500 ई.). यह युग चरक संहिता और सुश्रुत संहिता जैसे प्रमुख ग्रंथों का युग है। 1. **चरक संहिता**: चरक ने वायु, पित्त और कफ के तीन दोषों के सिद्धांत को नष्ट किया। 2. **सुश्रुत संहिता**: सुश्रुत ने शल्यचिकित्सा के सिद्धांत और प्रक्रियाओं का वर्णन किया। बौद्ध युग (500 ईसा पूर्व-1000 ईसवी). बौद्ध धर्म के प्रचार के साथ आयुर्वेद का विकास हुआ। बौद्ध भिक्षुओं ने आयुर्वेद को अन्य देशों की तरह तिब्बत, चीन और श्रीलंका तक सीमित रखा है। मध्य युग (1000-1600 ई.). इस दौरन में मुस्लिम वैद्यों ने भी आयुर्वेद में योगदान दिया था। इब्न सिना (एविसेना) जैसे विद्वानों ने भारतीय चिकित्सा शास्त्रों का अनुवाद और अध्ययन किया। आधुनिक युग (1600 ई. से आगे). ब्रिटिश काल में आयुर्वेद को कुछ हाथ तक दबा दिया गया, लेकिन 19वीं और 20वीं सदी में फिर से इसमें रुचि जागी। स्वतंत्रता के बाद भारत सरकार ने आयुर्वेद को प्रचार और प्रसार करने के लिए कई कदम उठाए। आज के समय : आज आयुर्वेद को विश्वभर में एक समग्र चिकित्सा पद्धति के रूप में विकसित किया जा रहा है। बहुत से देशों में आयुर्वेद के अस्पताल और चिकित्सालय स्थापित किये गये हैं। आयुर्वेद का मूल मंत्र है "स्वस्थस्य स्वास्थ्य रक्षणम, आतुरस्य विकार निवारणम", अर्थात् स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा और रोगियों के रोगों का निवारण। इसमें प्राकृतिक और समग्र उपचार प्रदान करने पर ज़ोर दिया जाता है।
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