आयुर्वेदिक चिकित्सा प्रणाली में आहार को विशेष महत्व दिया गया है। आयुर्वेद के अनुसार, आहार का सेवन केवल शरीर को पोषण देने के लिए नहीं, बल्कि शरीर, मन और आत्मा के संतुलन को बनाए रखने के लिए भी आवश्यक है। आयुर्वेद में आहार सेवन के नियम इस प्रकार से दिए गए हैं:
क्यों आहार सेवन करना चाहिए?
1. शारीरिक स्वास्थ्य: आहार हमारे शरीक्योंर को ऊर्जा और पोषक तत्व प्रदान करता है, जो शारीरिक कार्यों को सुचारू रूप से चलाने में मदद करते हैं। उचित आहार से रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और व्यक्ति स्वस्थ रहता है।
2. मानसिक स्वास्थ्य: आहार का मानसिक स्वास्थ्य पर भी गहरा प्रभाव पड़ता है। सत्त्व गुणयुक्त आहार मन को शांति और स्थिरता प्रदान करता है, जबकि तामसिक आहार मन में उदासी और निराशा ला सकता है।
3. प्राकृतिक संतुलन: आयुर्वेद में त्रिदोष सिद्धांत (वात, पित्त, कफ) का महत्व है। सही आहार सेवन इन दोषों के संतुलन को बनाए रखता है, जिससे व्यक्ति का शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य बेहतर होता है।
कब आहार सेवन करना चाहिए?
1. समय पर भोजन: आयुर्वेद में दिनचर्या का विशेष महत्व है। सूर्योदय के बाद और सूर्यास्त से पहले भोजन करना उत्तम माना गया है। यह हमारे शरीर की जैविक घड़ी (बायोलॉजिकल क्लॉक) के अनुरूप होता है।
2. तीन बार भोजन: आयुर्वेद में दिन में तीन बार भोजन करने की सलाह दी जाती है - सुबह का नाश्ता (ब्रेकफास्ट), दोपहर का भोजन (लंच), और रात का भोजन (डिनर)। सुबह का नाश्ता हल्का और पौष्टिक होना चाहिए, दोपहर का भोजन सबसे भारी होना चाहिए ! 3.खाली पेट नहीं खाना: आयुर्वेद में भोजन को तब ही ग्रहण करने की सलाह दी गई है जब पिछला भोजन पूरी तरह पच चुका हो। इससे भोजन का पाचन सही तरीके से होता है और गैस्ट्रिक समस्याएं नहीं होती।
कैसे आहार सेवन करना चाहिए?
1. शांति और एकाग्रता से भोजन करना: आयुर्वेद में भोजन को शांति और ध्यान के साथ खाने की सलाह दी गई है। भोजन के समय ध्यान अन्यत्र नहीं होना चाहिए। इससे पाचन तंत्र बेहतर तरीके से कार्य करता है और भोजन का पोषण शरीर को पूर्ण रूप से मिलता है।
2. धीरे-धीरे चबाकर खाना: भोजन को धीरे-धीरे चबाकर खाने से लार के एंजाइम्स भोजन के साथ मिलते हैं, जिससे पाचन प्रक्रिया सुचारू होती है। 3. **पाचन अग्नि को महत्व देना**: आयुर्वेद में पाचन अग्नि को बहुत महत्वपूर्ण माना गया है। पाचन अग्नि को मजबूत रखने के लिए हल्का और सुपाच्य भोजन करना चाहिए। बहुत ठंडा या बहुत गर्म भोजन नहीं करना चाहिए।
4. आहार का चयन: व्यक्ति के प्रकृति (वात, पित्त, कफ) के अनुसार आहार का चयन करना चाहिए। वात प्रकृति के लोगों को गर्म और तैलीय भोजन, पित्त प्रकृति के लोगों को ठंडा और कम मसालेदार भोजन, और कफ प्रकृति के लोगों को हल्का और सूखा भोजन करना चाहिए।
5. सीजनल और स्थानीय भोजन: आयुर्वेद में मौसमी और स्थानीय फलों और सब्जियों का सेवन करने की सलाह दी गई है। इससे शरीर को आवश्यक पोषक तत्व मिलते हैं और पाचन तंत्र पर अतिरिक्त भार नहीं पड़ता।
6. संतुलित आहार: आहार में सभी आवश्यक तत्व जैसे प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट, वसा, विटामिन, और खनिज शामिल होने चाहिए। संतुलित आहार से शरीर को संपूर्ण पोषण मिलता है और स्वास्थ्य बेहतर रहता है।
परिणाम:
आयुर्वेद में आहार का सेवन केवल शारीरिक पोषण के लिए नहीं, बल्कि सम्पूर्ण स्वास्थ्य के लिए आवश्यक है। सही समय पर, सही तरीके से, और संतुलित आहार का सेवन करने से शरीर, मन, और आत्मा का संतुलन बना रहता है। आयुर्वेदिक दृष्टिकोण से आहार का सेवन प्राकृतिक नियमों के अनुसार करना चाहिए, जिससे दीर्घकालिक स्वास्थ्य और सुख-शांति प्राप्त होती है।
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